Sunday 13 May 2012

आगे बढ़ते चलो ...!





- राजकुमार सोनी

    पश्चिम के प्रसिद्ध विचारक इमर्सन का कथन है -  'मुझे नरक में भेज दो, मैं अपने लिए वहीं स्वर्ग बना लूँगा।Ó इमर्सन के पास नरक को स्वर्ग में बदलने का नुस्खा था। बड़ा अद्भुत और अजब हैं यह विचारों से बना है। एक को गिलास आधा खाली दिखाई देता है और दूसरे को आधा भरा। पहले की थिकिंग निगेटिव है और दूसरे की समझ पोजिटिव है। गिलास तो जैसा है वैसा ही है। उसके प्रति हमारे विचार हमारी जीवन शैली और विचार शक्ति को प्रकट करते हैं। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा बनता है- यदि प्रयत्न ठीक दिशा में करता रहे। सोच और विचार स्वर्ग को नरक बना सकते हैं तो नरक को स्वर्ग में बदल सकते हैं।
    विचारों की विकृति ही दुर्भाग्य है एवं विचारों की सुकृति ही सौभाग्य है। सच तो यह है कि मनुष्य के भाग्य का निर्माण करता है। बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त है कि विचारों के माध्यम से स्वयं मनुष्य अपना भाग्य लिखा करता है। एक सामान्य सिपाही नेपोलियन बोनापार्ट बन जाता है। गरीब फोर्ड संसार का शीर्षस्थ धनपति बन जाता है। शक्ल से भद्दा (कुरूप) सामान्य वकील अमेरिका का राष्टï्रपति बनता है। विचारों की परिणति ही का दूसरा नाम भाग्य है और इसका विधायक मनुष्य स्वयं ही है।
    अपने भाग्य का निर्माता होने पर भी मनुष्य अपनी वैचारिक त्रुटियों के कारण ही दुर्भाग्य का शिकार बनता है क्योंकि वैचारिक विकृति अपने को क्षुद्र, तुच्छ एवं हेय मानने से ही आरंभ होती है। उसके व्यक्तित्व पर उसके विचार हावी हो जाते हैं और जन-जन को यह जानकारी देते रहते हैं कि यह व्यक्ति निराशावादी तथा गिरे हुए विचारों का है। अत: हम अपने को जिस प्रकार का बनाना चाहते हैं, उसी प्रकार के विचारों का सृजन हमें करना चाहिए। विचारों का प्रभाव निश्चित रूप से आचरण पर पड़ता है। हमारे आचरण हमारे विचारों का क्रियात्मक रूप है जिस दिशा में विचार चलते हैं हमारे शरीर और उसकी क्रियायें भी उसी दिशा में गतिशील हो जाती हैं। यही कारण है कि सभी मनुष्यों को विचार, बुद्धि और विवेक प्राप्त होने पर भी किसी का झुकाव विज्ञान की ओर होता है तो कोई व्यापार की तरफ झुकता है।
    यदि ऊँचे उठने, आगे बढऩे और सफलता प्राप्त करने का लक्ष्य हो तो अपने विचारों को भी वैसा ही विकसित करना चाहिए। यदि जीवन में सफलता, समाज में प्रतिष्ठïा और आत्मा में संतोष प्राप्त करना है तो  सबसे पहले विचारों, भावनाओं और चिन्तन को आशावादी और उदार बनाना चाहिए। हमें विचार शक्ति के महत्व को जानकर जीवन में ढालना चाहिए। अस्त-व्यस्त विचारों के कारण बहुधा लोगों को दुखी होते देखा जा सकता है। काल्पनिक चिंतायें उन्हें घेरे रहती हैं। विचारों पर नियंत्रण न कर पाने से ही अनचाही अनपेक्षित दिशाओं में हमारे विचार भटकते रहते हैं। अस्थिर चित्त से कोई काम भली-भांति सम्पन्न नहीं किया जा सकता है।
    हमें उपयोगी और आशावादी विचारों को विकसित एवं स्थापित करना चाहिए। हमें अभ्यास से अपने विचारों को साधना चाहिए। पर अपनी सीमा भी जानें। संसार में सभी वस्तुएं, सफलताएं सभी को नहीं मिल पाती हैं। शिव-संकल्प कर आगे बढ़े भगवान पर भरोसा रखें। सफलता आपके चरण चूमेगी। असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में ही पाया जाता है। शिव संकल्प कल्याण मार्ग की तरफ आपको चलाता है - बढ़ाता है और लक्ष्य पर पहुंचाता है।


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