Thursday 3 May 2012

‘तीसरी आंख’, मोक्ष का द्वार


‘तीसरी आंख’ निष्क्रिय है पर इसकी ऊर्जा दोनों सामान्य आंखों को चलाती है. यह स्थूल शरीर नहीं, बल्कि सूक्ष्म शरीर का हिस्सा है.
कहा जाता है कि तीसरी आंख की ऊर्जा वही है जो ऊर्जा दो सामान्य आंखों को चलाती है. ‘तीसरी आंख’ है लेकिन निष्क्रिय है. जब तक सामान्य आंखें देखना बंद नहीं करती, ‘तीसरी आंख’ सक्रिय नहीं हो सकती. जब हम सामान्य आंखों से देखते हैं, तब हम स्थूल शरीर से देखते हैं और ‘तीसरी आंख’ स्थूल शरीर नहीं, बल्कि सूक्ष्म शरीर का हिस्सा है.

स्थूल से स्थूल ही देखा जा सकता है. स्थूल शरीर के भीतर उसके जैसा ही सूक्ष्म शरीर भी है. विज्ञान इसे अब पीनियल ग्रंथि कहता है. यही तिब्बतियों का तृतीय नेत्र है शिवनेत्र. उसे खोलने के लिए कुछ करना पड़ता है.
प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि चेतना ‘तीसरी आंख’ का भोजन है.

‘तीसरी आंख’जन्म-जन्मों से भूखी

वह आंख भूखी है, जन्म-जन्मों से भूखी. यदि तुम उस पर ध्यान केंद्रित करोगे तो वह जीवंत हो जाती है. उसे भोजन मिल जाता है. एक बार इस कला को जान जाओ तो तुम्हारी चेतना स्वयं ग्रंथि द्वारा ही चुम्बकीय ढंग से खिंचती चली जाती है. फिर चेतना को साधना कोई कठिन बात नहीं है.

यह ‘तीसरी आंख’ ध्यान को पकड़ लेती है. वह ध्यान खींचती है. वह ध्यान के लिए चुम्बकीय है. ध्यान को साधने का यह सरलतम उपाय है

मोक्ष प्राप्ति में मददगार?

सर्वमान्य तथ्य है कि जो लोग अपनी ‘तीसरी आंख’ से देखने की क्षमता विकसित कर लेते हैं, वे योगी, ऋषि, पैगम्बर, दृष्टा आदि कहलाते हैं. माना जाता है कि ऐसे सिद्ध लोग उन कार्य को करने की भी क्षमता प्राप्त कर लेते हैं, जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता.

ज्यों-ज्यों ध्यान अभ्यासपूर्वक किया जाएगा, त्यों-त्यों आत्मज्ञान का प्रकटीकरण होता चला जाएगा. इस तरह जो लोग ज्ञान और ध्यान द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, उनके संचित कर्म (पूर्व जन्म में किये गये वे कर्म जिनका फल मिलना अभी प्रारम्भ नहीं हुआ है) तथा क्रियमाण कर्म (वे कर्म जो इस जीवन में किये जाते हैं) तो नष्ट हो जाते हैं, लेकिन प्रारब्ध कर्म (वे कर्म जिनका फल वर्तमान जीवन है) शेष रहते हैं. ऐसे लोग जीवन्मुक्त कहलाते हैं.

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